हे राम! क्या कभी आप ने सोचा था कि जिनकी भलाई एवं निरंतर विकाश के लिये नित नए आयाम आप सृजित कर रहे है वे अपनी निकृष्ट बुद्धि से इन आयामों का उपयोग स्वयं अपने विनाश में करेगें? सोचा तों आप ने अवश्य ही होगा. क्योकि आप कोई भी कार्य संपादित करने के पहले उसके नकारात्मक एवं सकारात्मक दोनों पहलुओं को ध्यान में रखते है. केवल एक पहलू को ही सर्वस्व मान कर उसके अनुकूल काम करना तों हम जैसे आप के एकांगी सृष्टी क़ी प्रवृत्ति में आता है. तों क्या यह आप किसी लक्ष्य विशेष के साधन हेतु संपादित करते है? क्या ऐसे एकांगी अग्रसरण को भी आप का प्रश्रय प्राप्त है? कहा तों यही जाता है कि बिना आप क़ी अनुमति के एक पत्ता तक नहीं हिलता. तों क्या भले के साथ बुरे कर्मो में भी आप क़ी संलिप्तता रहती है. क्या व्यभिचारियों के इस कुकृत्य में भी आप क़ी ही प्रेरणा है? क्या विनाशोन्मुख मूरख प्राणियों के इस दुर्बुद्धिजन्य कार्य में भी आप क़ी अनुशंसा रहती है? लेकिन यह शायद ठीक उसी तरह है जैसे हम सफ़ेद वस्तुओं को भी तब हरा देखने लगते है जब हम अपनी आँखों पर हरे रंग के शीशे का चश्मा लगाते है. शायद यही वास्तविकता है. ऐसे कामो में भी हमें आप क़ी संलिप्तता या अनुशंसा ही दिखाई पड़ती है. ठीक वैसे ही जैसे कहने वाले मूरख कहते है कि रावण के कारण ही राम को संसार में जाना जाने लगा. अन्यथा राम को कौन जानता? असत्य के कारण ही जगत में सत्य क़ी सत्ता है. अन्यथा सत्य का क्या अस्तित्व? या अँधेरे में ही रोशनी क़ी गुरुता है. उजाले में रोशनी का क्या तात्पर्य? लेकिन यह तों उनकी मूर्खता ही है. दूध क़ी अपनी पहचान है. दही का अपना अलग महत्व है. घी क़ी अपनी अलग सत्ता है. यह अवश्य है कि सब एक ही आधार से उत्सर्जित होते है. ठीक वैसे ही जैसे एक ही सत्य से जब विविध शाखाएं फूटती है तों उन्हें ज्ञान क़ी विविध विधाओं के नाम से जाना जाता है. या ठीक वैसे ही जैसे एक ही सूर्य से निकलने वाली किरणों का परावर्तन विविध सौर मंडलीय ग्रह अपनी अपनी विविध संरचना वाली सतहों से अलग अलग प्रकार से करते है. और सब ग्रहों से परावर्तित प्रकाश क़ी अपनी अलग सत्ता होती है. तथा सब का अपना अलग अलग प्रभाव होता है. ठीक वैसे ही अन्धेरा हो या न हो प्रकाश क़ी अपनी अलग ही महत्ता है. चाहे कितना भी उजाला क्यों न हो. रावण होता या नहीं होता, राम तों होते ही. क्यों कि उनको तों होना ही था. उनको तों जाना ही जाता. एक माँ अपने बच्चे का लालन पालन करती है. उसकी विविध भांति देख भाल करती है. तों इसका क्या तात्पर्य हुआ कि बच्चा गन्दगी करेगा ही नहीं? बच्चा तों गन्दगी करेगा ही. और माँ भी उस गन्दगी को साफ़ करेगी ही. तों क्या हम कहेगें कि माँ क़ी उस गन्दगी में संलिप्तता है? हे राम! अब इस गंदे क़ी गन्दगी को आप बहुत साफ़ कर लिये. अब आप ज़रा इस गंदे को स्वयं भी गन्दगी साफ़ करने क़ी प्रेरणा दें. क्योकि हमें आब यह अभिप्षित नहीं है कि केवल आप गन्दगी ही साफ़ करते रहें. बल्कि अब थोड़ी आवश्यकता है कि गन्दगी साफ़ होने के बाद वाले कृत्यों क़ी तरफ भी बढ़ने का अवसर मिले. अन्यथा यदि सदा वस्त्रो को केवल हम साफ़ ही करते रहेगें तों फिर उसे धारण कब करेगें? हे राम! हमारा ध्येय वस्त्रो को साफ़ करने तक ही सीमित न रखें. बल्कि उस साफ़ वस्त्र को धारण करने का भी अवसर दें. हे राम! यद्यपि यह सत्य है कि केवल आप के बारे में जान लेना आप को पा लेने से बढ़ कर है. लेकिन आप को जान लेना तथा आप को पा लेना दोनों दो चीजें है. इसीलिए सूर्यपुत्र एवं सुग्रीव सहोदर बाली ने अपने अवसान काल में कहा था कि- “जन्म जन्म मुनि जतन कराहीं. अंत राम कंह आवत नाहीं.” अर्थात हे राम! ऋषि मुनि जन्म जन्मान्तर तपस्या करते रह जाते है. किन्तु फिर भी उस अंतिम समय में आप का नाम तक मुँह से नहीं निकल पाता. और यह तों मेरा सौभाग्य है कि आप का नाम तों दूर, मेरे अंतिम समय में स्वयं आप ही साक्षात मेरे सामने खड़े है. तों हे प्रभो! आप का नाम तों सदा के लिये ही सहारा है. लेकिन तत्काल में जो अभी आवश्यकता है, वह आप के साक्षात्कार क़ी है. अन्यथा आप गन्दगी ही साफ़ करते रह जायेगें. और हम आप से गन्दगी ही साफ़ करवाते रह जायेगें. हे राम!
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