हे प्रभो! हमें आप की ज़रुरत है. आप को भले हमारी ज़रुरत न हो. लेकिन ऐसा क्यों? क्या इसीलिए आप ने हम को अलग कर दिया? लेकिन सही भी तो है. जब हम को अपने में ही रखना होता तो आप हम को अलग ही क्यों करते? तो क्या हम में आप नहीं है? यह क्या संभव है? नहीं, यह असंभव है. और यही एक मात्र असंभव है. क्योकि हम में तो आप है. हम में आप नहीं होते तो आप के प्रति इतनी पिपासा नहीं होती. जो एक बार किसी चीज का स्वाद ले लेता है. वह उसके प्रति अपना लगाव या बिलगाव उसके स्वाद के अनुसार निर्धारित कर लेता है. यदि स्वाद अनुकूल या मीठा हुआ तो उससे अपना लगाव प्रगाढ़ कर लेता है. और यदि स्वाद तीखा हुआ तो उससे पृथक हो जाता है. आप से हम आये है. आप के सान्निध्य का स्वाद हमें मिल चुका है. इसीलिए हम आप को पाने की इच्छा रखे है. तो थोड़ा हो या ज्यादा, आप तो हम में है ही. लेकिन एक अविश्वसनीय रूप और दिखाई देता है. बहुत सारे आप को नहीं चाहते. क्योकि उन्होंने आप के मीठे स्वाद का रसास्वादन किया ही नहीं है. लेकिन यह कैसे संभव है? क्या ऐसा संभव है जो कोई आप से नहीं आया हो? बिलकुल संभव नहीं है. तो फिर वह क्यों आप से दूरी बनाए रखना चाहता है? जिस प्रकार सुन्दर कपड़ा हो या भद्दा, धोने पर उससे मैल तो निकलनी ही है. तो मैल या गन्दगी तो गन्दगी ही कहलायेगी. चाहे थोड़ी हो ज्यादा. तो यदि किसी ने आप के धुले स्वरुप का रसास्वादन न कर गन्दगी के ही साथ डूबता इतराता रह गया हो, वह तो आप से दूरी बनाएगा ही. लकिन एक बात अवश्य है क़ि चाहे नदी कर्मनासा हो या पतित पावनी गंगा, मिलना तो सागर में ही है. ठीक उसी प्रकार चाहे आप के सच्चिदानंद स्वरुप का पान हो या आप से बिलग हुए गन्दगी स्वरुप अज्ञान का पान, उसको चखते हुए तथा उसे पकड़ कर चलते हुए पहुँचना तो आप तक ही है. अहा! अति आनंद का विषय है. अंत में आप मिलेगें ही. आखीर आप अपनो से कब तक बिछड़े रहेगें? हम भी तो आप के अपने ही है. इसीलिए आप पुनः हमें अपना सान्निध्य दे रहे है. किन्तु क्या फिर आप हम में मिल जायेगें? फिर हम क्या होगें? क्या हम भी आप में मिल जायेगें? सुना है दूध में पानी मिलाने पर वह दूध का ही रंग ग्रहण कर लेता है. तो आप हम हो जायेगें या हम आप हो जायेगें? लेकिन दूध में तो पानी के मिल जाने पर पानी का अपना स्वतंत्र अस्तित्व समाप्त हो जाता है. इसका तात्पर्य यह क़ि यदि हम आप में मिलते है तो हमारा अस्तित्व समाप्त हो जाएगा. किन्तु आप हम में मिलेगें तो आप का अस्तित्व ज्यो का त्यों रह जाएगा. हे प्रभो! इसीलिए आप ने हनुमान, विभीषण, सुग्रीव, शबरी आदि को तो चरणों में शरण दिया ही, आप ने रावण, कुम्भ कर्ण, मारीच, सुबाहु एवं ताड़का को भी अपने धाम में ही स्थान दिया.
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