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हम या ईश्वर?

हे राम !
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हे राम

आप क्या है? आप का कार्य क्या है? आप कोई भी कार्य क्यों करते है? आप स्वयं ही क्यों है? आप नहीं ही थे तों क्यों नहीं थे? अभी क्यों हो गये? आप पहले ही क्यों थे? हम तों है. देखिये, क्या आप हमें देख सकते है? आप देखेगे कैसे? आप तों है ही नहीं. हम स्वयं को कैसे देख सकते है. ? क्योकि हम को हम कभी दिखाई देता ही नहीं है. यदि हम को हम दिखाई देने लगे तों फिर वह हम दूर कैसे रह सकता है. वह तों हम में मिल जाएगा. क्या दो आग क़ी लपटें एक साथ जलाने पर एक में नहीं मिल जाती? क्या एक कटोरे में दो अलग अलग कटोरे से डाला गया पानी एक ही में नहीं मिल जाता? और फिर वह दुबारा अलग नहीं हो पाता है. तों फिर वह हम भी नहीं है. केवल हम हैं. हम ने हम को अलग छोड़ा ही नहीं है. हम ने तों उस हम को आत्म सात कर लिया है. आप भी तों अकेले ही है?. या नहीं है. तों फिर आप को किस ने आत्म सात कर लिया? आप थे ही क्यों जो उसने आप को आत्म सात कर लिया? या वह भी नहीं है और आप भी नहीं है? फिर जब आप नहीं है तों हम क्यों है? लेकिन हम तों है. आप भले न हो. क्योकि आप न तों कभी थे. और न अभी है. और न कभी रहेगें. तों क्या हम भी नहीं रहेगें? आप रहे या न रहे हम तों रहेगें ही. क्योकि हम रहेगे तों ही आप भी रह सकते है. ? लेकिन आप तों है ही नहीं. तों हम कहाँ से आ गये?
हे प्रभो! यह क्या चमत्कार है? हे प्रभो, चमत्कार बुद्धिहीन को दिखाई देता है. जिस घटना, वस्तु या कार्य के बारे में ज्ञान होगा या उससे परिचय होगा, उसे देख कर किसी को क्या चमत्कार लग सकता है? जब कोई चीज पहले बार दिखाई देती है जिससे कभी आमना सामना नहीं हुआ हो तों वह वस्तु चमत्कार सी प्रतीत होती है. हम आप क़ी नित नयी कार्य विधा को देखते है. और चूंकि हमें उसका ज्ञान नहीं है तों हमें तों वह चमत्कार ही लगेगा.
साथ में एक बात और है. यदि आप के पास कोई चमत्कार (हमारी बुद्धि से परे) या स्थैत्य वैचित्र्य न हो तों फिर हम में और आप में अंतर ही क्या है?
किन्तु यह तों हे प्रभो! बहुत ही साधारण बात है. यह हमारी समझ में पहले क्यों नहीं आई? आप तभी हो सकते है जब हम नहीं रहेगें. जब तक हम रहेगें वहां आप का निवास कैसे हो सकता है. क्योकि हम के कारण ही तों आप दिखाई नहीं देते है. जब हम निकल जाता है तों सिर्फ आप ही बचते है. और तब चूंकि हम होता ही नहीं है इसलिये सिर्फ आप ही दिखाई देते है. क्योकि हम तों है ही नहीं.
तों यह तों बिल्कुल स्वाभाविक बात है कि हम को आप कैसे दिखाई देगें. यही कारण है कि जब तक हम है तब तक आप का कोई अस्तित्व नहीं है. आप का अस्तित्व तभी है जब हम नहीं है. तों फिर क्या फ़ायदा? जब हम को आप दिखाई नहीं देगें, आप के बारे में पुरा ज्ञान कैसे होगा? फिर तों वही अनुमान के सहारे अँधेरे में तीर मारते रह जायेगें. आप ऐसे है. आप वैसे है.
लेकिन हमारी यह सोच भी मूर्खता एवं निर्बुद्धि का एक रूप ही है. क्योकि ज्यादा दूध के लिये बड़े बर्तन क़ी आवश्यकता होगी. अब उसी कटोरे में उसकी क्षमता से ज्यादा दूध कैसे रखा जा सकता है? तों पहले तों अनुमान के सहारे आप के एक एक गुणों को पहचानना पडेगा. और अंत में सारे गुणों को पहचानने के बाद एक आकृति तैयार करनी पड़ेगी. और उस आकृति के सदृश एवं उन गुणों को धारण किये हुए को ढूँढना पडेगा. और इस प्रकार ढूँढने में भी आसानी होगी.
लेकिन बड़ी ही कठिन समस्या है कि हे राम! जब बर्तन क़ी रूप रेखा बढ़ने के कगार पर आती है तभी हम का हथोडा उस पर प्रहार कर उसे चिपटा या टेढा कर देता है. और उस टूटे बर्तन से गुणों का संग्रह बह कर बिखर जाता है.
हे प्रभो! तों कहने का तात्पर्य यह कि आप भी इस हम के हथोड़े से घबराते है? तभी तों जब तक यह हम रहता है, आप इसके पास फटकने नहीं पाते.
तों क्या यह मान लें कि आप नहीं है. हम ही है. आप कभी न तों थे. न तों अभी है. और न कभी रहेगें? हम ही थे, अभी भी हम है. तथा आगे भविष्य में भी हम ही रहेगें. आप नहीं रहेगें.
लेकिन यह भविष्यवाणी और ज्योतिष तों निठल्लो, अकर्मण्य एवं अंध विश्वासी लोगो का आधार है. फिर यह भविष्य वाणी कैसे क़ी जा सकती है कि आगे भी हम ही रहेगें? इस प्रकार तों हम को तों इस भविष्य वाणी से दूर ही रहना चाहिए.
कोई गलत बात नहीं है. हम को भविष्यवाणी से क्या लेना देना? क्योकि हम को तों पहले से अपने भविष्य के निर्धारित प्रारूप क़ी प्राप्ति हो चुकी है. हम का कभी कोई भविष्य होता है? तों जब भविष्य ही नहीं तों भविष्य वाणी कैसी? फिर चाहे ईश्वर हो या न हो इससे हम को क्या लेना देना? हम तों हम ही है.
क्रमशः.——————————–

हे राम!

गिरिजा

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