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जागरण मंच पर अपना परिचय

हे राम !
हे राम !
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इस मंच के आदरणीय सम्मानित सदस्य
मैं गिरिजा शंकर मिश्र महालेखाकार कार्यालय में पिछले दस साल से कार्य रत हूँ. दैनिक जागरण में एक महानुभाव के लेख के कुछ अंश छपे थे. उस लेख के सम्पूर्ण हिस्से को पढ़ने के लिए एक लिंक दिया गया था. मैंने उस पर क्लिक किया तो उसके बाद एक के बाद एक पूरा ग्रंथालय ही खुल गया. मुझे यह भी जानकारी हुई की इस मंच पर विचार प्रस्तुत करने में कोई प्रतिबन्ध नहीं है. और न ही उसमें कोई काट छाट होती है. फिर मैंने तीन चार दिन लगातार अनेक लेखको की रचनाएँ पढी. कुछ लेख तो बहुत ही उच्च श्रेणी है. कुछ मनोरंजक है. कुछ लेख ऐसे भी है जो किसी दबाव में या केवल अपने को बड़ा बताने के लिए है. किन्तु यह भी एक कला ही है की कैसे सबके बीच में प्रतिष्ठा स्थापित की जा सकती है. इसी लिए मुझे भी प्रोत्साहन मिला की मैं भी बिना किसी रुकावट के अपने सोच-विचार इस मंच पर रख सकता हूँ.
मैंने इस मच से सम्बन्ध मात्र जान पहचान एवं सम्बन्ध के लिए बनाया है. क्योकि मेरी शिक्षा इतनी उच्च कोटि की नहीं है जो मैं गंभीर विषयो का विश्लेषण एवं चिंतन कर सकूं. जियोग्राफी में मैंने 1982 में मैंने एम्.ए किया जिसका साहित्य से कुछ भी लेना देना नहीं है. मेरी इस मंच पर उपस्थिति मात्र इस लिए है की मित्र बनाओ . उनके काम आओ. तथा समय पड़ने पर उनसे सहायता भी लो.
इस लिए मेरे लिखने का कोई विशेष विषय होगा, ऐसा कुछ भी नहीं है.
वैसे मैंने लगभग सात आठ सौ लेख पढ़े है. उनमें मुझे जो सर्वाधिक अच्छे लगे उनके लेखको के नाम निम्न प्रकार है. यहाँ पर मै एक बात स्पष्ट कर दूं की जिन लेखको के नाम मै लिख रहा हूँ, उनकी रचनाओं को प्राथमिकता मात्र मै दे रहा हूँ. ऐसे अन्य बहुत से लेखक है जिनकी रचनाएँ हो सकता है बहुत अच्छी एवं उच्च कोटि की हो. और बहुतो को पसंद भी होगी. किन्तु जो मुझे पसंद है, मै सिर्फ उनका ही नाम दे रहा हूँ. और उनसे विनती है, वे मुझे सदा अपना मैत्री देगें.
पाठक नामा के एस पी सिंह, राहुल वैश, Shrwon, सत्य के विष दन्त के कालिया, अजय कुमार पाण्डेय, जे एल सिंह, श्रीमती यमुना पाठक, निशा मित्तल, मूरख मंच के श्री संतोष कुमार, डाक्टर आशुतोष शुक्ल एवं और विक्रम आदित्य.
श्री किशन श्री जी की रचना मुझे बहुत गंभीर लगी. उनका विषय सोचने एवं चिंतन करने का है. और सही कहूं तो वह लिखते ही है पढ़ने के लिए. पढ़ने पर लगता है की कुछ पढ़ा है. सुश्री निशा मित्तल जी के लेख में एक धारा होती है. जो शुरू से अंत तक प्रसंग के अनुरूप होती है. और सब से मजेदार संतोष जी, बड़े मनोयोग से उत्थान अवरोध की जड़ पर कुल्हाड़ी चलाते हुए, इस मंच के समर्पित योगी. सुभाष वाधवा की अनुभवी लेखनी अपने आप में एक चमत्कार्हाई. बहुत ही योग्य एवं विशाल विद्वता के प्रतीक प्रकाश चन्द्र पाठक जी, जिनकी बौद्धिक क्षमता निः संदेह सराह नीय है.
पंडित आर. के. राय को तो मैं बहुत पहले सा जानता हूँ. उनकी पहली रचना दैनिक जागरण में मैंने 1993 में पढी थी. तब से मैं उनको बराबर पढ़ता हूँ. उनका ज्ञान एवं विलक्षण बौद्धिक क्षमता अथाह है. वेद पुराण तो उन्होंने सूक्ष्मता से अधीत किया ही है. विज्ञान में भी उनकी आश्चर्य जनक पैठ है. खैर पंडित राय के बारे में कुछ भी कहना सूरज को दीपक दिखाने जैसा है. यदि वह इस लेख को पढ़ते है, तो उनका मैं इस मंच से भी चरण वन्दना करता हूँ.
अन्य भी अच्छे लोग है जो बहुत अच्छा लिखते है. a
और अंत में इस मंच, मंच के सम्पादक/आयोजक एवं प्यारे/श्रेष्ठ रचना कारो को मै बधाई देता हूँ .
गिरिजा

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